हर किसी को दिवाली के त्योहार का इंतज़ार रहता है। दिवाली का त्योहार आते ही दीये, लाइट्स , मिठाई और पठाखे दिमाग में आते है। लेकिन बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण कई राज्यों में पटाखों पर बैन लगा दिया गया है। राजधानी दिल्ली में भी पटाखों पर राज्य सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया है। सरकारी निर्देशों के अनुसार जो व्यक्ति भी इसका उल्लंघन करेगा उसे 6 महीने तक की जेल और साथ ही 200 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा।
आपको बता दे की कई शहरों में कुछ घंटों के लिए पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है, तो कहीं सिर्फ ग्रीन पटाखे ही जला सकेंगे। अब आपके मन में सवाल होगा की ग्रीन पटाखा आखिर होता क्या है ? तो चलिए आपको इसके बारे में बताते है।
दरअसल, ग्रीन पटाखों को निर्मित करने में फ्लावर पॉट्स, पेंसिल, स्पार्कल्स और चक्कर का इस्तेमाल होता है। इस कारण ये पटाखे वायु को कम प्रदूषित करते है। हालाँकि पटाखे ग्रीन हो या पारंपरिक, दोनों ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है। बस फर्क इतना है की ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत कम वायु प्रदूषण करते हैं।
ग्रीन पटाखे उत्सर्जन को बहुत हद तक कम करते हैं और धूल को अवशोषित करते हैं। इसमें बेरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक तत्व नहीं होते हैं। ग्रीन पटाखों को जलाने की इज़ाज़त सिर्फ उन्हीं शहरों में दी गई है, जहां हवा की गुणवत्ता मध्यम या खराब है। ग्रीन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर (PM) का खासतौर पर ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद पर्यावरण में कम से कम प्रदूषण फैले।
ग्रीन पटाखे की पहचान कैसे करे ?
ग्रीन क्रैकर्स से करीब 20 प्रतिशत पार्टिक्यूलेट मैटर निकलता है जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती है। ये गैस पटाखों की संरचना पर आधारित होती हैं। इन पटाखों को सेफ वॉटर रिलीजर (SWAS), सेफ मिनिमल एल्युमिनियम (SAFAL) और सेफ थर्माइट क्रैकर (STAR) नाम दिया गया है। ये पटाखे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा विकसित की गयी है। इन पटाखों के बॉक्स पर बने क्यूआर कोड को आप NEERI नाम के एप से स्कैन करके पहचान सकते है।
ग्रीन पटाखे हो या पारम्परिक पटाखे , इन सभी को जलाने समय सावधानी बरते। भीड़भाड़ वाली जगहों पर पटाखे न फोड़े, बल्कि खाली और खुली जगह पर इन्हे जलाये।