आए दिन, भारत में धर्म के नाम पर विवाद छिड़ जाते हैं। एक व्यक्ति धर्म को लेकर भावनाओं में दरारें ड़ालता है तो वहीं, उसका विरोध करने वाले भी या उस बयान पर राज़ी न होने वाले लोग आपस में भीड़ जाते हैं और फिर बयान एक बड़ा रूप ले लेता है, जो अपनों को ही अपनों से धर्म या आस्था के नाम पर अलग करने का काम करता है।
बिहार में यही हुआ। बुधवार को, नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के पन्द्रवेह दीक्षांत समारोह में बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर ने बोला भड़काऊ बयान। रामचरितमानस, मनुस्मृति जैसी धार्मिक पुस्तकों को गलत ठहराते हुए बोले,'रामचरित मानस में लिखा गया है कि अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए इसका अर्थ होता है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण कर जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पीकर सांप हो जाता है।' इसी को वर्णित करते हुए बोले की 'एक युग में मनुस्मृति, दूसरे में रामचरितमानस तथा तीसरे युग में गुरु गोलवलकर की बंच आफ थाट्स जैसी किताबों ने समाज में नफरत फैलाई है। कोई भी देश नफरत से कभी महान नहीं बना है, देश जब भी महान बनेगा, प्यार से ही।' उनका कहना था की रामचरितमानस जो हिन्दुओं की धर्मिक पुस्तक है, उससे सिर्फ, लोगों में धर्म,जाति जैसी गलत भावनाएं बन रही है, देश के लोगों को विभाजित कर रही हैं।
उनके इस बयान में सिर्फ बिहार में ही नहीं, देश भर का हिंदू समाज आहत है। हिन्दू सनातनियों और, संतों ने इस बात को बताया की उन्होंने रामचरितमानस का पूरी तरह से गलत, और अपमानजनक भावार्थ दुनिया को दिया है। संतों ने उन पर कारवाही की मांग की और कहा की उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ेगी नहीं माँगा तो जिसने बभी चंद्रशेखर की जुबान काट दी उसे 1 करोड़ की राशि देंगे जैसा विवादित बयान जारी कर दिया है। सरकार से आज्ञा की वह जिस पद में हैं, उसके लायक नहीं बने हैं इसलिए उन्हें पद से निलंबित कर दिया जाए।