एक समय इंद्रप्रस्थ नामक स्थान पर वेद शर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती के साथ निवास करता था। उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख प्यास सह नहीं पाने के कारण चंद्रोदय से पूर्व ही वह मूर्छित हो गई। बहन की यह हालत भाइयों से देखी नहीं गई तो भाइयों ने एक पेड़ के पीछे से जलती मशाल की रोशनी दिखाई और बहन को चेतनावस्था में ले आए। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही वीरावती के पति की मृत्यु हो गई। उसी रात इंद्राणी पृथ्वी पर आई।